डी.पी. विप्र महाविद्यालय में राष्ट्रीय सेवा योजना द्वारा इको फ्रेंडली विधि से किया गया गणपति जी का विसर्जन:-
वह हमारे आने वाले कल के लिए बहुत खतरनाक स्थिति पैदा करने वाला हैं जल संकट की स्थिति और नदियों का संरक्षण क्योंकि ये मिट्टियों से निर्मित नहीं होते अतः आसानी से नदियों में वर्षों तक अपनी उसी अवस्था में विद्यमान रहते हैं जिस अवस्था में मूर्ति को विसर्जित किया जाता है मूर्तियों में चढ़ाये जाने वाले रंग भी रसायनयुक्त होते हैं जिससे जलीय जंतु भी इससे प्रभावित हैं।
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विशेष:-
बिलासपुर न्यूज़:- हर साल गणेश चतुर्थी का पर्व भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी का पर्व हर साल हिन्दू पंचाग के भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस बार गणेश चतुर्थी दो सितंबर को शुरू हुई । हम वर्तमान समय में जीवनदायिनी नदियों में मूर्तियों का विसर्जन कर देते हैं जिससे नदियां प्रदूषित हो जाती है किंतु हम धार्मिक आस्था को अत्यधिक महत्व देते हुए वर्तमान भयावह स्थिति को भुला देते हैं नदियों पर मूर्तियों को विसर्जित करने से जिस प्रकार से निरंतर जल प्रदूषण हो रहा है।
वह हमारे आने वाले कल के लिए बहुत खतरनाक स्थिति पैदा करने वाला हैं जल संकट की स्थिति और नदियों का संरक्षण क्योंकि ये मिट्टियों से निर्मित नहीं होते अतः आसानी से नदियों में वर्षों तक अपनी उसी अवस्था में विद्यमान रहते हैं जिस अवस्था में मूर्ति को विसर्जित किया जाता है मूर्तियों में चढ़ाये जाने वाले रंग भी रसायनयुक्त होते हैं जिससे जलीय जंतु भी इससे प्रभावित हैं।
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इन सभी भयावह स्थिति को देखते हुए राष्ट्रीय सेवा योजना कार्यालय डीपी विप्र महाविद्यालय परिसर में विराजमान गणपति बप्पा को इको फ्रेंडली ढंग से विसर्जित किया गया गणपति बप्पा को विधि विधान के साथ महाविद्यालय परिसर में एक विशाल टब में विसर्जित किया गया ।
उसके पश्चात प्राप्त मिट्टी और जल को वृक्षारोपण में प्रयुक्त किया जाएगा साथ ही साथ समाज के लोगों से आग्रह किया गया कि वे भी इको फ्रेंडली ढंग से गणपति बप्पा का विसर्जन करें या फिर मिट्टी से निर्मित मूर्तियों को स्थापित करें ताकि नदियों को प्रदूषित होने से बचाया जा सके ।
आज के इस कार्यक्रम में महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. श्रीमति अंजू शुक्ला, राष्ट्रीय सेवा योजना प्रभारी डॉ. एम.एस. तंबोली, प्रो. किरण दुबे,प्रो रीना ताम्रकार (कार्यक्रम अधिकारी) प्रो. यूपेश कुमार(कार्यक्रम अधिकारी) विकास सिंह, मनीष मिश्रा, दीपक व्यास ,मोहित साहू, धनेश रजक,शारदा श्रीवास,रानुलता दिनकर,नंदिनी शर्मा, अखिलेश साहू,आकाश सोनी,अंजली,भगवती ,संध्या ,रीना यादव, पुष्पलता यादव,उमेश कुमार,चंद्ररेखा, छाया,राजेन्द्र ध्रुव, रविना,पूजा रजक ,आदित्य जोशी,परदेशी,अजय,श्रेयांश दीक्षित, देवेंद्र,शक्ति पांडेय, हेमराज,तरुण,आकाश दास, दीक्षा,तमेश,मुकेश, तथा अन्य स्वयंसेवक उपस्थित थे ।
विशेष:-
इको फ्रेंडली बप्पा के फायदे:- मिट्टी से बनी प्रतिमाएं पीओपी से बनी प्रतिमाओं की तुलना पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचातीं। इको फ्रेंडली प्रतिमाएं पानी में जल्दी घुल जाती हैं। वहीं इको फ्रेंडली गणपति को सुंदर बनाने के लिए इसमें कच्चे और प्राकृतिक रंगो का इस्तेमाल किया जाता है जो कि नुकसान नहीं पहुंचाते। ऐसे में न पानी दूषित होता है और न ही कोई बीमारियां फैलने का डर रहता है।
पीओपी वाले बप्पा के नुकसान:- पीओपी और प्लास्टिक से बनी प्रतिमाओं में खतरनाक रसायनिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। यह रंग न सिर्फ स्वास्थ्य बल्कि पर्यावरण के लिए भी काफी हानिकारक होते हैं। जब पीओपी से बने बप्पा का विसर्जन किया जाता है तो पीओपी पानी को दूषित कर देता है और जल्दी घुलता भी नहीं। इससे पानी की गुणवत्ता पर असर पड़ता है।
वहीं पानी में घुल जाए तो पीओपी पानी की सतह पर जमा हो जाता है। इन प्रतिमाओं के रसायनिक रंग पानी में मिल जाते हैं और बाद में इसी पानी का इस्तेमाल खाना पकाने और नहाने जैसे कामों में किया जाता है। ऐसे पानी के इस्तेमाल से लोग बीमार भी हो जाते हैं। इसी पानी का इस्तेमाल खेती के कामों में भी किया जाता है। ऐसे में दूषित पानी से होने वाली फसलें भी काफी प्रभावित हो जाती हैं और सब्जियों के साथ हानिकारण तत्व भी घर तक पहुंच जाते हैं।
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