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Monday 23 August 2021

छत्तीसगढ़ की लोकप्रिय पारंपरिक त्योहार भोजली (Bhojali Festival) हर्षोल्लास और पूरे उत्साह से सोमवार शाम ग्राम लखाली में मनाया गया:-

 छत्तीसगढ़ की लोकप्रिय पारंपरिक त्योहार भोजली (Bhojali Festival) हर्षोल्लास और पूरे उत्साह से सोमवार शाम ग्राम लखाली  में मनाया गया:-


जांजगीर - चांपा:- लोकपर्व भोजली लखाली गांवों में धूमधाम से मनाया गया। भोजली विसर्जन के लिए गांवों में भजन कीर्तन के साथ लोग समूह में निकलते देखे गए। आगे-आगे महिलाएं युवतियां भोजली को सिर में रखकर चलती रहीं। क्षेत्र में भोजली उत्सव को लेकर महिला वर्ग में विशेष धार्मिक आस्था है। सात से नौ दिन तक समूह में महिलाएं विशेष पूजा अर्चना में शामिल होती हैं। सोमवार को सुबह से महिला वर्ग भोजली उत्सव को लेकर काफी उत्साहित दिखा। भोजली गीत के साथ महिलाएं कलश और भोजली को सिर पर लेकर गांव के तालाब पहुंची। बंधवा तालाब में भोजली विसर्जित किया गया। इस दौरान जलाशयों में भी पूजा अर्चना की गई, जिसके बाद सभी भोजली लेकर पूरे गांव में एक दूसरे से मिलकर कान में भोजली लगाया और शुभकामनाएं दी। इस दौरान हर एक गली मुहल्ले में लोगों को झूमते, गाते देखा गया। ग्रामीण महिलाओं ने बताया कि यह उत्सव देवी की आराधना के लिए कुंवारी कन्याएं करती हैं।


क्या है भोजली:-

भोजलीवास्तव में गेहूं का पौधा है, जिसे सावन मास के दूसरे पक्ष की पंचमी से नवमी के बीच किसी पात्र में बोया जाता है। इस पौधे को सूर्य से बचाकर दीपक की रोशनी में रखा जाता है। हल्दी-पानी से सींचकर भोजली के पौधे की देखरेख रक्षाबंधन के दिन तक की जाती है। राखी के दूसरे दिन भोजली का विसर्जन पारंपरिक उल्लास के साथ किया जाता है। भोजली को छत्तीसगढ़ की सुख-समृद्धि हरियाली का प्रतीक माना जाता है।




मुख्य खबर:-

छत्तीसगढ़ का पारंपरिक लोकपर्व ‘भोजली' सोमवार को ग्राम लखाली में मनाया गया। बांधवा तालाब में भोजली विसर्जन किया गया। तालाबों के साथ-साथ नहर नदियों में भी भोजली विसर्जित की गई। विसर्जन के बाद बचाए गए पौधे बड़े-बुजुर्गों को भेंट कर आशीर्वाद लिया गया। इस दिन को छत्तीसगढ़ी फ्रेंडशिप के रूप में क्षेत्र में मनाया गया। एक-दूसरे को भोजली देकर मितान बनाने की परंपरा का भी निर्वहन किया गया। एक दूसरे के कान में भोजली के पौधे लगाकर दोस्ती को अटूट बनाने की कसम भी ली गई। छत्तीसगढ़ में भोजली का महत्व फें्रडशिप डे की तरह है, इसलिए सभी दोस्त अपने- अपने मितान से मिलने तालाब किनारे पहुंचे थे। शहर सहित आसपास के गांवों से बच्चे, महिलाएं युवतियां अपने सिर पर भोजली ले कर तालाब में विसर्जन किए और लोगो से भेज किए।



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